जैन धर्म के अनुसार, वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री आदिनाथ की परंपरा में चौबीस वें तीर्थंकर हुए थे.
जैन धर्म के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म वैशाली के एक क्षत्रिय परिवार में राजकुमार के रूप में चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को हुआ था. इनके बचपन का नाम वर्धमान था. यह लिच्छवी कुल के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे. जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि वर्धमान जी ने घोर तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी, जिस कारण उनको महावीर कहा गया और उनके अनुयायी जैन कहलाए.
महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रात: काल प्रभातफेरी निकालते हैं तथा भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा का आयोजन किया जाता है. इसके बाद महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है. महावीर जी ने अपने उपदेशों द्वारा समाज का कल्याण किया. उनकी शिक्षाओं में मुख्य बातें थी कि सत्य का पालन करो, प्राणियों पर दया करो, अहिंसा को अपनाओ, जियो और जीने दो. इसके अतिरिक्त उन्होंने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति तथा छ: आवश्यक नियमों का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया, जो जैन धर्म के प्रमुख आधार हुए.
मानव जीवन को सरल और महान बनाने के लिए महावीर स्वामी ने कई अमूल्य शिक्षाएं दी हैं. उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
अहिंसा: -
संसार में जो भी जीव निवास करते हैं उनकी हिंसा नहीं और ऐसा होने से रोकना ही अहिंसा है. सभी प्राणियों पर दया का भाव रखना और उनकी रक्षा करना.
अपरिग्रह:-
जो मनुष्य सांसारिक भौतिक वस्तुओं का संग्रह करता है और दूसरों को भी संग्रह की प्रेरणा देता है वह सदैव दुखों में फंसा रहता है। उसे कभी दुखों से छुटकारा नहीं मिल सकता.
ब्रह्मचर्य: -
ब्रह्मचर्य ही तपस्या का सर्वोत्तम मार्ग है. जो मनुष्य ब्रह्मचर्य का पालन कठोरता से करते हैं, स्त्रियों के वश में नहीं हैं उन्हें मोक्ष अवश्य प्राप्त होता है. ब्रह्मचर्य ही नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है.
क्षमा:-
क्षमा के संबंध में महावीर कहते हैं 'संसार के सभी प्राणियों से मेरी मैत्री है वैर किसी से नहीं है. मैं हृदय से धर्म का आचरण करता हूं. मैं सभी प्राणियों से जाने-अनजाने में किए अपराधों के लिए क्षमा मांगता हूं और उसी तरह सभी जीवों से मेरे प्रति जो अपराध हो गए हैं उनके लिए मैं उन्हें क्षमा प्रदान करता हूं.
अस्तेय:-
जो पराई वस्तुओं पर बुरी नजर रखता हैं वह कभी सुख प्राप्त नहीं कर सकता. अत: दूसरों की वस्तुओं पर नजर नहीं रखनी चाहिए.
दया:-
जिसके हृदय में दया नहीं उसे मनुष्य का जीवन व्यर्थ हैं. हमें सभी प्राणियों के दयाभाव रखना चाहिए. आप अहिंसा का पालन करना चाहते हैं तो आपके मन में दया होनी चाहिए.
छुआछूत: -
सभी मनुष्य एक समान है. कोई बड़ा-छोटा और छूत-अछूत नहीं हैं. सभी के अंदर एक ही परमात्मा निवास करता है. सभी आत्मा एक सी ही है.
हिताहार और मिताहार:-
खाना स्वाद के लिए नहीं, अपितु स्वास्थ्य के लिए होना चाहिए. खाना उतना ही खाए जितना जीवित रहने के लिए पर्याप्त हो. खान-पान में अनियमितता हमारे स्वास्थ्य के खिलवाड़ है जिससे हम रोगी हो सकते हैं.
जैन धर्म के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म वैशाली के एक क्षत्रिय परिवार में राजकुमार के रूप में चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को हुआ था. इनके बचपन का नाम वर्धमान था. यह लिच्छवी कुल के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे. जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि वर्धमान जी ने घोर तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी, जिस कारण उनको महावीर कहा गया और उनके अनुयायी जैन कहलाए.
महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रात: काल प्रभातफेरी निकालते हैं तथा भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा का आयोजन किया जाता है. इसके बाद महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है. महावीर जी ने अपने उपदेशों द्वारा समाज का कल्याण किया. उनकी शिक्षाओं में मुख्य बातें थी कि सत्य का पालन करो, प्राणियों पर दया करो, अहिंसा को अपनाओ, जियो और जीने दो. इसके अतिरिक्त उन्होंने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति तथा छ: आवश्यक नियमों का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया, जो जैन धर्म के प्रमुख आधार हुए.
मानव जीवन को सरल और महान बनाने के लिए महावीर स्वामी ने कई अमूल्य शिक्षाएं दी हैं. उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
अहिंसा: -
संसार में जो भी जीव निवास करते हैं उनकी हिंसा नहीं और ऐसा होने से रोकना ही अहिंसा है. सभी प्राणियों पर दया का भाव रखना और उनकी रक्षा करना.
अपरिग्रह:-
जो मनुष्य सांसारिक भौतिक वस्तुओं का संग्रह करता है और दूसरों को भी संग्रह की प्रेरणा देता है वह सदैव दुखों में फंसा रहता है। उसे कभी दुखों से छुटकारा नहीं मिल सकता.
ब्रह्मचर्य: -
ब्रह्मचर्य ही तपस्या का सर्वोत्तम मार्ग है. जो मनुष्य ब्रह्मचर्य का पालन कठोरता से करते हैं, स्त्रियों के वश में नहीं हैं उन्हें मोक्ष अवश्य प्राप्त होता है. ब्रह्मचर्य ही नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है.
क्षमा:-
क्षमा के संबंध में महावीर कहते हैं 'संसार के सभी प्राणियों से मेरी मैत्री है वैर किसी से नहीं है. मैं हृदय से धर्म का आचरण करता हूं. मैं सभी प्राणियों से जाने-अनजाने में किए अपराधों के लिए क्षमा मांगता हूं और उसी तरह सभी जीवों से मेरे प्रति जो अपराध हो गए हैं उनके लिए मैं उन्हें क्षमा प्रदान करता हूं.
अस्तेय:-
जो पराई वस्तुओं पर बुरी नजर रखता हैं वह कभी सुख प्राप्त नहीं कर सकता. अत: दूसरों की वस्तुओं पर नजर नहीं रखनी चाहिए.
दया:-
जिसके हृदय में दया नहीं उसे मनुष्य का जीवन व्यर्थ हैं. हमें सभी प्राणियों के दयाभाव रखना चाहिए. आप अहिंसा का पालन करना चाहते हैं तो आपके मन में दया होनी चाहिए.
छुआछूत: -
सभी मनुष्य एक समान है. कोई बड़ा-छोटा और छूत-अछूत नहीं हैं. सभी के अंदर एक ही परमात्मा निवास करता है. सभी आत्मा एक सी ही है.
हिताहार और मिताहार:-
खाना स्वाद के लिए नहीं, अपितु स्वास्थ्य के लिए होना चाहिए. खाना उतना ही खाए जितना जीवित रहने के लिए पर्याप्त हो. खान-पान में अनियमितता हमारे स्वास्थ्य के खिलवाड़ है जिससे हम रोगी हो सकते हैं.
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