
पिछले साल भी काशी में आस्था का ये पर्व धूमधाम से मनाया गया था। कई घाटों पर पूजा के लिए जनसैलाब उमड़ आया था। कई व्रती महिलाओं को तो घाट पर जगह हासिल करने के लिए काफी मशक्कत भी करनी पड़ी थी। ऐसी मान्यता है कि छठ में दशाश्वमेध घाट पर अर्घ्य देने से दस अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। छठ पूजा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।

काशी के सात किलोमीटर लंबे गंगा घाट पर छठ के महापर्व पर पिछले साल आस्था का जनसैलाब उमड़ा था। व्रती महिलाओं ने सूर्य देवता को अर्घ्य देकर मनोकामना की थी। घाटों को देखकर ऐसा लग रहा था कि पूरा काशी यहीं पर उतर आया हो। हर महिला के हाथ में पूजन सामग्री से सजी थाल थी।

मन ही मन सब यही कामना कर रही थीं कि भगवान भास्कर और छठी मईया उनकी हर मुराद पूरी कर दें। गंगा की गोद में खड़े होकर हजारों व्रती महिलाओं ने डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया था।

इस नजारे को वहां मौजूद कई लोगों ने अपने कैमरे में कैद कर लिया था। ऐसा कहा जाता है कि यहां मां गंगा उत्तरवाहिनी अर्धचंद्राकर हैं, इसीलिए यहां छठ पूजा करने से उसका फल दोगुना मिलता है।

घाटों पर गूंजे छठ मईया के गीत
घाटों पर रात पर छठ मईया के गीत गूंजते रहे। 'हे छठ माई अरघिया देकर विनती करली तुहार मन्नत पूरा करिहा हमार, उगीं ऐ सुरज देव भइल बढ़ी देर' जैसे लोकगीतों ने माहौल और भक्तिमय बना दिया। व्रती महिलाओं ने दीप प्रज्वलित कर छठ मईया की पूजा की। इसके बाद एक दीप गंगा मईया और एक दीप भगवान भास्कर को अर्पित किया गया। इसके बाद महिलाएं नदी, तालाब और पोखरों में कमर भर पानी में जाकर खड़ी हो गईं। भगवान भास्कर के डूबने पर उन्हें अर्घ्य दिया। इसके बाद व्रती महिलाएं परिवार के सदस्यों के साथ घर लौट आईं। सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही उनका व्रत पूरा हो गया।
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